Friday 1 April 2016


राजनगर
विदूषक जब वापस पहुचा,तो पहले से ही वहां मौजूद क्रॉस को अपना इंतजार करते पाया।
"बधाई हो।अपने पहले ही मुकाबले में धूल चाट आये।"क्रॉस ने तंज कसा।
विदूषक के जबड़े भींचे।"वहाँ पहले से ही तिरंगा भी मौजूद था।और वैसे भी मेने अपनी तैयारी ध्रुव के हिसाब से ही की थी।"वो एक एक शब्द को चबाते हुए बोला।
"मात खाने के बाद बहाने बनाना,ये कुछ ज्यादा ही पुराना हो गया।"क्रॉस उठ खड़ा हुआ।"तुम्हे जीतना था।किसी भी कीमत पर।और तुम दुम दबाकर भाग गए।इससे ही पता चलता है कि तुम कितने गम्भीर हो ध्रुव को मारने के लिये।"
"इस बार मेरी तैयारी उन दोनों के लिये होगी।"वो अपनी लैब की तरफ लपका।

राजनगर
ध्रुव, रेनू,मृणालिनी(मिली)और मानसी के साथ एअरपोर्ट पर मौजूद था।
"मिली,मुझे ख़ुशी होती,अगर तुम कुछ वक़्त रुक जाती।"रेनू की आवाज में प्रार्थना की झलक थी।
"ख़ुशी तो मुझे भी होती,लेकिन फिलहाल ये मुमकिन नहीं।मुझे उम्मीद है, तुम मेरी मजबूरी समझोगी।"मिली की आवाज में मजबूरी झलक उठी।"खैर,मानसी को तुम मेरी तरह ही समझना।वो वेसे भी तुमसे मिलती ही रहेगी।"
फिर उसने विदा ली।
"चलो मानसी,कमांडो हेडक्वार्टर से आज ही अपनी रिपोर्ट पर काम शुरू कर दो।"पीछे रेनू बोली।"फिर तुम्हारे रहने का इंतजाम करेंगे।"
"ठीक है।"मानसी का सिर सहमति मे हिला।

राजनगर
आई जी राजन का घर
डोरबेल ने हाहाकार मचा रखा था,जब श्वेता चिढ़ती हुई दरवाजे के करीब पहुँची।उसने दरवाजे पर ही कान लगाया।कुछ अजीब सी आवाज ने उसे दरवाजा खोलने पर मजबुर कर दिया।
दरवाजा खोलते ही उसे उसकी गलती का एहसास हो गया। सामने जोकर की वेशभूषा में विदूषक मौजूद था।
"हेल्लो श्वेता।"कहते हुए उसके हाथ में एक खिलौना नजर आने लगा।
श्वेता कुछ समझ पाती, उसके पहले ही खिलौने से निकलती गैस ने उसे चिरनिंद्रा में धकेल दिया।

कमांडो हेडक्वार्टर
मानसी को रेनू ने कई ऐसे केसेस के बारे में बताया,जिसमे विदूषक का जिक्र था।ध्रुव का उससे निपटना।विदूषक की स्किल्स,आदि।ये बात और लंबी होती अगर रेनू का ध्यान एकाएक आये उस सिग्नल पर न गया होता।"कैप्टन का मेसेज आया है।"करीम बोला।
"क्या हुआ?"रेनू करीब पहुची।

भारत इस आई जी राजन के केबिन में मौजूद था।
"हेल्लो सर,मेरा नाम एडवोकेट भारत है।मै दिल्ली से हूँ।एक मुजरिम की तलाश में यहाँ आया हूँ।आपकी और आपकी पुलिस की मदद चाहता हूँ।"भारत एक ही सांस में बोल गया।
आई जी राजन ने उसे बैठने का इशारा किया।
सामने ही लगी एक कुर्सी पर वो ढेर हुआ।
"कहिये ,हम आपकी क्या मदद कर सकते है?"आई जी राजन बोले।
"दिल्ली के पागलखाने से विदूषक नाम का एक मुजरिम निकल भागा है।उसे राजनगर में देखा भी गया है।वह दिल्ली में कुछ लोगों को घायल करके भागा है।ये केस मुझे सौंपा गया है इसलिए मुझे उसके बारे में कुछ जानकारी चाहिए थीं।"भारत ने वाकई आई जी राजन को इम्प्रेस कर दिया था।
"ओके,वी विल हेल्प यू।"मि. राजन ने जैसे ही बात ख़त्म की,फोन की घंटी घनघना उठी।
"हेल्लो,क्या?..श्वेता ठीक तो है?...तुम जा कहाँ रहे हो?...ठीक है।..हम भी वहाँ पहुँचते है!...ओके,ओके..पर अपना और श्वेता का ख्याल रखना।."फोन रखकर जैसे ही मि. राजन ने सिर उठाया,भारत कही नजर नहीं आया।

ध्रुव का घर
भारत अभी पहुंचा ही था कि उसे ठिठक जाना पड़ा।कमांडो फ़ोर्स और "मानसी"भी यहाँ मौजूद थी।
"मेरे ख्याल में तो कैप्टन को पता चल गया है कि इसबार विदूषक कहाँ है?"करीम के इन शब्दों ने भारत के भी कान खड़े कर दिये, साथ ही मानसी के भी।
"तुम्हे कैसे पता?"पीटर बोला।
"इसमें लिखा है, अपनी बहन को वही मिलने आ जाओ,जहाँ एक बार तुम अपने प्यार को बचाने चैंपियन किलर से,और एक बार केस के सिलसिले में ध्वनिराज से मिल चुके हो।"करीम ने खत पढ़ते हुए कहा।
"ये भी कोई बात हुई?"रेनू बोली।"ये तो हमें भी पता है की वो जगह.."करीम ने उसे टोका।
"पुराना राजनगर है न!"करीम ने बात पूरी की।"पता है हमे।पर हमे वहाँ जाने की इजाजत नहीं है।"
भारत को उसके मतलब की बात पता चल चुकी थी।उसने वहाँ रुकने की जरूरत नहीं समझी।
(तिरंगा को कहीं पहुंचने के लिये किसी इजाजत की जरूरत नहीं थी)

पुराना राजनगर
ध्रुव कौनसा विदूषक से डरता था,जो चुपचाप आता।उसे पता था कि उसपर नजर रखी जा रही होगी।इसलिए छुपके आना उसे पसंद नहीं आया।
वो अपनी बाइक पीछे छोड़कर कुछ दूर पैदल चल आया।उसे इंतजार था,तो उस जाल का,जो यहाँ बिछा होना था।
ध्रुव अभी इंतजार कर ही रहा था कि अचानक एक भारी भरकम चीज़ उससे आ टकराई।वो खुद को संभाल भी नहीं पाया था,कि एकाएक दूसरी तरफ से हुए वार ने उसके होश उडा दिये।
खुद को सँभालते हुए ध्रुव ने आसपास नजर दौड़ाई,तो उसे आसपास की दो इमारतों पर मशीनी तंत्र से जुड़े दस्ताने नजर आये,जो स्प्रिंग लगे होने के कारण दूसरी इमारत तक भी पहुँच सकते थे।
"ओह्ह्हके"ध्रुव ने ठंडी सांस छोड़ी।
अब जब ध्रुव उसे देख चूका था,तो उसे वार रोकने में दिक्कत होने का सवाल ही नही उठता था।ध्रुव ने उन्हें जल्द ही आपस में भिड़ाने का प्लान बना लिया।बिल्कुल उसी तरह उसने काम भी शुरू किया।वो तेजी से दौड़ते हुए एक इमारत के इतने करीब पहुंचा कि दूसरे दस्ताने को उसपर प्रहार करने के लिये उस इमारत तक पहुचना ही पड़ा।ध्रुव तेजी से अपनी जगह से हटा।और वार दूसरे दस्ताने पर हुआ।जिसपर कोई फर्क नहीं पड़ा।ध्रुव समझ गया कि अब दूसरा प्लान बनाना पड़ेगा।वो दोनों दस्तानो के बीचोबीच आया और हमले का इंतजार करने लगा।जैसे ही दोनों दस्ताने उसके करीब पहुचे, वो दो कदम आगे बढ़ा और तेजी से एक बैक फ्लिप लगाकर पीछे आया।दस्तानो ने अपनी दिशा बदली।ध्रुव ने दोनों पर पाँव रखा और फिर आगे बढ़ गया,दस्ताने एक दूसरे से उलझे।पर अब भी ध्रुव एक दस्ताने पर चढ़कर इमारत की तरफ बढ़ने लगा।दस्ताने तेजी से उस ओर लपके और आपस में और भी उलझने लगे।पर अब भी वो दूसरी इमारत तक पहुँच सकते थे।ध्रुव की समझ में नहीं आ रहा था,की इन्हें रोका कैसे जाये।अभी उसका दिमाग दौड़ ही रहा था कि एकाएक तेजी से आई ढाल ने दोनों के आपस में उलझ चुके स्प्रिंग्स को काट डाला।और ध्रुव और दोनों दस्ताने जमीन पर आ गिरे।
"ओह्ह्ह,तिरंगा,तुम?"ध्रुव ने आखिर चैन की सांस ली।"सिर्फ तुम्हारी मदद की ही जरूरत थी मुझे।"
दोनों की बातों को रोका, उस आवाज ने।
दोनों की नजरे सामने पड़ी,जहाँ श्वेता को उन्होंने उलटे लटके देखा।
"बचाओ।"वो गला फाड़कर चीखी।
ध्रुव आगे बढ़ा ही था कि तिरंगा ने उसका हाथ थामा।
ध्रुव ने पलटकर देखा।
"मुझे तुमसे ऐसी बेवकूफी की उम्मीद नहीं थी,ध्रुव।"तिरंगा ने कहते हुए उसके कदमो की तरफ इशारा किया।ध्रुव ने नीचे देखा तो उसके होश फाख्ता हुए।नीचे माइंस बीछी थीं।
"पर..."ध्रुव ने कहना चाहा।
"मैं समझ रहा हूँ, पर जब खुद जिन्दा रहेंगे,तभी तो उसे बचाएंगे।"तिरंगा ने उसके कंधे पर हाथ रखा।
"माफ़ करना तिरंगा,मै भावना में बह गया था और अपने साथ तुम्हारी भी जान दांव पर लगा बैठा था।"ध्रुव ने अब आगे बढ़कर सोचना शुरू कर दिया।
"तिरंगा,"ध्रुव के पुकारते ही तिरंगा करीब आ पहुंचा।"कई लोगो ने मिलकर इसे बिछाया है।हालाँकि उन्होंने अपने कदमों के निशान मिटाने की पूरी कोशिश की है, फिर भी वो हल्के नजर आ रहे हैं।हम उन कदमों को फॉलो कर सकते है।"
"तो देर किस बात की?"तिरंगा ने छलांग लगाकर 3 मीटर दूर एक निशान पर कदम रखा।फिर पलट कर ध्रुव को रुकने का इशारा किया।फिर आगे बढ़कर 2 मीटर दूर एक निशान पर छलांग लगाई और ध्रुव ने तिरंगा की जगह ली।
जल्द ही वो दोनों श्वेता के करीब पहुंच गए।तिरंगा आगे था,इसलिए वो पहले पहुंचा।दोनों शानदार ढंग से रस्सी के ऊपर चलते हुए उसके करीब पहुंचे।तिरंगा पीछे हट गया और ध्रुव आगे बढाऔर जैसे ही ध्रुव ने श्वेता को छुआ,"तुम्हे कुछ नहीं होगा,श्वेता, मै आ गया हूँ।"वैसे ही एक तेज धमाका हुआ और श्वेता के मुँह से हरी गैस निकली।दोनों के दिमाग पर बेहोशी छाने लगी।उनके हाथ छूटे और दोनों जमीन पर लगे माइंस पर आ गिरे।तेजी से धमाके होने लगे और वहां की सारी इमारतें जमींदोज होने लगी।दोनों ने जैसे तैसे खुद को संभाला।इमारतों को गिरता देख दोनों ने एक दूसरे की आँखों में देखा और जैसे कोई फैसला ले लिया।
ध्रुव को अपने जीपीएस सिस्टम से पता करने में देर नहीं लगी कि वो लोग इस वक़्त वहां की सीवरेज लाइन से कितनी दूर हैं।
दोनों भागते हुए एक इमारत के नजदीक पहुचे।तभी एकाएक तिरंगा बोला।
"ध्रुव, वो देखो।"सामने इमारत की तरफ इशारा था उसका,जहाँ दोनों को ही एक साया खड़ा नजर आ गया।
"उस इमारत तक पहुचने में इस इमारत की सीवरेज लाइन हमारी मदद करेगी।

दूर खड़ा साया विदूषक था।जो दोनों को मेहनत करते देख खुश हो रहा था।उसके करीब ही दो इमारतों के बीच की रस्सी पर श्वेता लटकी थी,जो इस वक़्त बेहोश थी।
"बहूत खुश हो लिये विदूषक।अब रोने का वक़्त आ गया है।"अंगारे भरे हुए थे उसकी आवाज में भी और आँखों में भी।
विदूषक के लिए ये चेहरा नया था।"कौन हो तुम?"
"विषनखा"
विदूषक कुछ समझ पाता, उसके पहले ही विषनखा ने छलांग लगाकर एक जोरदार किक उसकी पसलियों में जड़ दी।एक जोरदार वार उसने सीधे उसके सर पे किया और विदूषक नीचे जा गिरा।
(अब तक विषनखा ने खुद को काफी अपग्रेड कर लिया था।उसके हाथों में डिज़ाइनर ब्रेसलेट बंधे थे,जिनमें दस अलग अलग तरह के जहर मौजूद थे।उंगलियो के दबाव से वो नाखूनों में दौड़ पड़ते थे।)
विषनखा उसके सिर पर जा खड़ी हुई।तभी विदूषक ने अपनी चाल चली।तेजी से उसने विषनखा के चेहरे पर फूंक मारकर बेहोश करने वाली गैस उसपर छोड़ दी।विदूषक उसे धक्का मारकर भागने को हुआ कि एकाएक विषनखा ने उसे पकड़ने की कोशिश की।उस कोशिश में विषनखा का नाख़ून विदूषक के शरीर में लग गया और पोलोनियम नाम का जहर उसके शरीर में दौड़ गया।
(पोलोनियम एक बेहद खतरनाक जहर है।ये बड़ी हद 10 मिनट में किसी को भी मार सकता है।)
ठीक उसी वक्त श्वेता को होश आ गया था।उसकी नजर सामने इमारत पर पड़ी,जहां विषनखा खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी।
विषनखा (इससे पहले कि मै यही बेहोश हो जाऊँ, मुझे यहाँ से निकलना होगा।ध्रुव और तिरंगा यहाँ आते ही होंगे।)
विषनखा ने तेजी से निचे छलांग लगाई।और श्वेता की नजरों से ओझल हो गई।
थोड़ी ही देर में ध्रुव और तिरंगा भी वहाँ पहुँच गए और श्वेता को छुड़ाना उनके लिये ज्यादा मुश्किल नहीं हुआ।
"वो साया चला गया।"ध्रुव के मुँह से निकला।
श्वेता का दिमाग उसे कुछ और ही समझा रहा था।(लेकिन शायद मैने उसे पहचान लिया है।वो जो भी थी चंडिका के हाथों नहीं बचेगी।)

क्या हुआ पोलोनियम का असर विदूषक पर?क्या वो जिन्दा बच गया?और अगर बचा तो कैसे? श्वेता की नजरो में विषनखा ही उसकी अपहरणकर्ता थी।तो क्या चंडिका और विषनखा का टकराव हुआ?
अब तक रोबो कहाँ था?क्या क्रॉस उस तक पहुँच पाया?और क्या अंजाम हुआ उनके टकराव का?
ऐसे कई सवालो का जवाब लाएगा अगला भाग
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