तिरंगा झुक नही सकता - अभिषेक आनंद
.....................तिरंगा झुक नहीं सकता..............
"दुश्मन है अपने देश के लोग,फिरंगो में वो शक्ति नहीं
चीर डालो उन सीनों को,जिनमे देशभक्ति नही।।"
रुक जाए जहाँ,मगर,सदा बढे जो कदम
रोक सके उन क़दमों को,है तूफानों में कहाँ वो दम।
एक लबादा,हिन्द नाम का,देशप्रेम से जो रंगा है
फ़िदा वतन के नाम पर ,देखो एक तिरंगा है।।
पाप मिटाने का जूनून,लहू बनकर दौड़ रहा
आगे बढ़कर आने को जहाँ जग सारा मुंह मोड़ रहा।
एक अकेला,सूर्य सा प्रकाश मार्ग जो बता रहा है
वीरता की सच्ची गाथाएं सबको जो दिखा रहा है।।
धर्म,मजहब,जाति-पांति-इन सबकी दीवार गिराकर
सबसे ऊंचा धर्मं मानवता का,इसी को वो अपनाकर
हर माँ,हर बाप,हर संतान का अभिमान
हम सब के रक्षार्थ हेतु,कुर्बान है जिसकी पहचान।।
हिन्द देश का लबादा,जिसके शर(शरीर) पर लहराता है,
तीन रंगों वाली ढाल,पीठ पर बैठा इठलाता है।
चेहरे पे निशान तिरंगा का,झांके माथे से बिखरे बाल
हाथों में न्याय की शक्ति,न्याय स्तम्भ कालों का काल।।
बाज से लोचन,चीते से होड़ जो लगा सकता है
तेज दिमाग,वज्र का सीना,मजबूत शिला तोड़ सकता है
व्याघ्र फुर्ती,फौलाद का जिस्म,आँखों में पीड़ा न्याय के पराजय की
उस पराजय को चीरने निकला,लेके हाथो में शक्ति विजय की।।
झूकने न पाए देश का तिरंगा,मैं अपना अस्तित्व झुका दूंगा,
वतनपरस्ती की इस ज्वाला से,दुश्मनों को जला दूंगा।
फहरेगा तिरंगा,हर घर,हर छत,हर खेत खलिहान पर।।
लहरेगा फिर हिन्दुस्तान का परचम,ऊपर नील वितान पर।।
............................समाप्त.............
ऐ पुन्यधरा
ऐ वसुंधरा
ऐ हिन्द मेरा
अपने अंक में हमें पालकर
जो रज रज कण कण में चमन भरता है
ऐ भारतवर्ष,हिन्द मेरा-तुमको तिरंगा नमन करता है।
तुमको तिरंगा नमन करता है।।
.............जय हिन्द,जय भारतवर्ष....................
कृपया रिव्यु देने में अपना अमूल्य वक़्त जरूर बर्बाद करें............
"दुश्मन है अपने देश के लोग,फिरंगो में वो शक्ति नहीं
चीर डालो उन सीनों को,जिनमे देशभक्ति नही।।"
रुक जाए जहाँ,मगर,सदा बढे जो कदम
रोक सके उन क़दमों को,है तूफानों में कहाँ वो दम।
एक लबादा,हिन्द नाम का,देशप्रेम से जो रंगा है
फ़िदा वतन के नाम पर ,देखो एक तिरंगा है।।
पाप मिटाने का जूनून,लहू बनकर दौड़ रहा
आगे बढ़कर आने को जहाँ जग सारा मुंह मोड़ रहा।
एक अकेला,सूर्य सा प्रकाश मार्ग जो बता रहा है
वीरता की सच्ची गाथाएं सबको जो दिखा रहा है।।
धर्म,मजहब,जाति-पांति-इन सबकी दीवार गिराकर
सबसे ऊंचा धर्मं मानवता का,इसी को वो अपनाकर
हर माँ,हर बाप,हर संतान का अभिमान
हम सब के रक्षार्थ हेतु,कुर्बान है जिसकी पहचान।।
हिन्द देश का लबादा,जिसके शर(शरीर) पर लहराता है,
तीन रंगों वाली ढाल,पीठ पर बैठा इठलाता है।
चेहरे पे निशान तिरंगा का,झांके माथे से बिखरे बाल
हाथों में न्याय की शक्ति,न्याय स्तम्भ कालों का काल।।
बाज से लोचन,चीते से होड़ जो लगा सकता है
तेज दिमाग,वज्र का सीना,मजबूत शिला तोड़ सकता है
व्याघ्र फुर्ती,फौलाद का जिस्म,आँखों में पीड़ा न्याय के पराजय की
उस पराजय को चीरने निकला,लेके हाथो में शक्ति विजय की।।
झूकने न पाए देश का तिरंगा,मैं अपना अस्तित्व झुका दूंगा,
वतनपरस्ती की इस ज्वाला से,दुश्मनों को जला दूंगा।
फहरेगा तिरंगा,हर घर,हर छत,हर खेत खलिहान पर।।
लहरेगा फिर हिन्दुस्तान का परचम,ऊपर नील वितान पर।।
............................समाप्त.............
ऐ पुन्यधरा
ऐ वसुंधरा
ऐ हिन्द मेरा
अपने अंक में हमें पालकर
जो रज रज कण कण में चमन भरता है
ऐ भारतवर्ष,हिन्द मेरा-तुमको तिरंगा नमन करता है।
तुमको तिरंगा नमन करता है।।
.............जय हिन्द,जय भारतवर्ष....................
कृपया रिव्यु देने में अपना अमूल्य वक़्त जरूर बर्बाद करें............
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