Wednesday 16 December 2015


नमस्कार। सभी मित्रों का स्वागत है वर्ष 1999 मे।
चलिये शुरु करते है 1999 का सफर। साल 1999 मे अब तक एक क्लैंडर ईयर मे सबसे ज्यादा कामिक्से प्रकाशित हुई। आँकडों की बात करे तो 187 कामिक्से इस साल आई।Nagraj Action Year की शुरुआत भी नागराज से ही हुई थी। तो मैं भी नागराज से ही शुरु हो जाता हूँ। इस साल का पहला सैट नागराज के विशेषांक “फन” का था। फन का एक्शन पैक्ड टाईटल कवर मुझे बहुत अच्छा लगा था। और कामिक्स भी fully action packed थी। लेकिन इस कहानी का सबसे अच्छा भाग था नागराज और शीत नागों का टकराव। कहानी के अंत मे शीत नागकुमार नागराज से प्रभावित होकर उसके शरीर मे ही वास करने का निश्चय करता है। और इस तरह नागराज की शक्तियों मे और ईजाफा हो जाता है। फिर से आते है फन की कहानी पर। फन शीत नाग के अलावा एक और रुप से भी नागराज के जीवन मे अहम स्थान रखती है। भारती और विसर्पी की पहली मुलाकात के रुप मे। भारती उत्सुकतावश विसर्पी को नागराज के प्रति अपनी भावनाओं के बारे मे बता देती है। और विसर्पी नागराज के साथ अपने विवाह के निर्णय पर पुन: विचार करने के लिए विवश हो जाती है। फन मे एक खास बात और थी। और वो थी इसका ग्रीन पेज। ग्रीन पेज 69 मे जिक्र है नागराज के टीवी सीरियल का। जो कि इसी साल आने वाला था। (लेकिन दुर्भाग्यवश ये प्रोग्राम कभी भी टीवी पर नही आ सका)

विशेष: फन के सैट मे एकमात्र उल्लेखनीय कामिक परमाणु की आतिशबाज थी। आतिशबाज, परमाणु की तीन कामिक्सो वाली एक सीरिज की पहली कामिक थी जिसके बारे मे आगे चर्चा करेंगे।

फन के बाद आई “नागिन”। शीतनागों के बाद नागराज का सामना हुआ ईच्छाधारी सर्पो की एक नई प्रजाति से। सागर की गहराई मे रहने वाले नीरनागों से। नीरनाग सम्राट नागराज से हुई एक मुठभेड मे गंभीर रुप से घायल हो जाते है और इसका बदला लेने की कसम खाती है उनकी पत्नी। वो नागराज की शक्तियों को चुराकर उसका इस्तेमाल नागराज के ही विरुद्ध करती है। लगभग 2 साल बाद फेसलेस इस कामिक मे फिर से नजर आया। कामिक के अंत मे दोनो पक्षों के बीच की गलतफहमी दूर हो जाती है और  नागराज और नीरनाग आपस मे मित्र बन जाते है। लेकिन शीतनाग कुमार की तरह नीरनाग सम्राट नागराज के साथ नही जाते। काफी समय बाद नीरनाग "परकाले" और "शेषनाग" मे दुबारा नजर आए।

विशेष: नागिन के ग्रीन पेज मे राज कामिक्स माकर्स मैराथन प्रतियोगिता का जिक्र है जिसमे वे मेधावी छात्र भाग लेते थे जिन्होंने वार्षिक परीक्षा परिणाम मे 87 प्रतिशत से ज्यादा अंक अर्जित किए हो। 1997 मे जब पहली बार राज कामिक्स ने मेधावी छात्रों को पुरस्कृत किया था तब अंक सीमा 80 प्रतिशत थी।

नागिन के बाद नागराज की जो कामिक आई उसका जिक्र मैंने बाद के लिए बचा रखा है। इसलिए उस कामिक को छोडकर उस से अगली कामिक पर आते है। “विष-अमृत” पर। इस कामिक के बारे मे बस इतना कहना चाहूँगा कि कामिक का अंत और रहस्योद्घाटन उस स्तर का नही था जिस स्तर की कामिक्से उस समय आ रही थी। चित्रांकन हालांकि शानदार है इस कामिक मे। “सम्मोहन” संभवत: नागराज की इस साल की आखिरी कामिक थी। क्योंकि राज का राज या तो अगले साल के पहले सैट मे आई थी या फिर दिसम्बर 1999 के अंत मे। असाधारण और अपार सम्मोहन शक्ति का मालिक करणवशी महानगर वासियों की इच्छा शक्ति को अपने सम्मोहन के जरिए खीचने की कोशिश करता है और तब उसे रोकने आता है नागराज। लेकिन नागराज खुद शिकार हो जाता है करणवशी के घातक सम्मोहन का और उसे अपना खुद का रुप ही एक राक्षस का नजर आने लगता है। यही नही महानगर की जनता और पुलिस भी नागराज के खिलाफ हो जाती है। इस कामिक के जरिए नागराज की दुनिया मे आगमन होता है फिल्मी नागू का। नागू की मदद से नागराज करणवशी के सम्मोहन से भी आजाद होता है और करणवशी को शिकस्त भी देता है। नागू की इस मदद के बदले नागराज उसे देता है उम्रकैद। अपने शरीर मे वास करने की इजाजत देकर। और इस तरह नागराज को एक और शक्ति मिल जाती है। नागू के कारनामे नागराज की बहुत सी कामिक्सो मे देखने को मिलते है। यहाँ तक की राज कामिक्स की महानतम श्रंखला नागायण मे भी।

Bankeylal Comics, Raj Comics
Green Page 70
नागराज का अध्याय अब यहीं समाप्त करते है और action & adventure genre को भी थोडा विश्राम देते हैं। और मन को थोडा गुदगुदा लेते हैं। बात करते हैं हास्य सम्राट बांकेलाल की। बांकेलाल के बारे मे पोस्ट की शुरुआत मे ही बताने की एक वजह ये भी है कि 1999 बांकेलाल के लिए वैसा ही रहा जैसा कि 1997 डोगा के लिए। इस साल बांकेलाल के कुल 6 विशेषांक आए। अब तक सबसे ज्यादा। इतने तो बांकेलाल के पूरे कैरियर मे नही आए थे जितने की इस साल आने वाले थे। शुरुआत हुई “जादूई मुहावरे” से। ये कामिक साल के दूसरे सैट मे ही थी। विक्रम सिंह और उसकी मंत्री परिषद का एक पुराना दुश्मन, करोडी, मुहावरों की शक्तियों से लैस होकर बचपन मे उसके साथ हुए अन्याय का बदला लेने के लिए कूच करता है और अपने मुहावरों से सभी को परेशानी मे डाल देता है। तब मदद के लिए आता है बांकेलाल। हांय। बांकेलाल कब से दूसरो को भला सोचने लगा। उसे तो फायदा तब है जब वो राजा और बाकी मंत्री उसके रास्ते से हट जाए। जरूर इसमे भी बांकेलाल की कोई योजना है। वैसे जादुई मुहावरे मे बांकेलाल ने कामेडी से ज्यादा एक्शन किया है। बांकेलाल को एक्शन करते हुए देखने को बहुत कम मिलता है।

विशेष: जादुई मुहावरे के ग्रीन पेज मे ही बांकेलाल के इस साल आने वाले विशेषांको के बारे मे बता दिया गया था। उसमे सिर्फ “तिलिस्मी जूते” का वर्णन नही था।

जादुई मुहावरे के बाद बांके की अगली कामिक थी “राजा बांकेलाल”। लो जी पै गई ठंड। बन गया बांकेलाल राजा। (But how? How? How?) और राजा बनते ही शुरु कर दिए युद्ध अभियान और कर दिया विशालगढ़ पर ही आक्रमण। इस कामिक के संवाद बहुत ही मजेदार थे। “सेनापति सभासदों की ओर मुंह कर के खडे हो जाओ। अभी तुम्हारी ही ही ही निकालता हूं।” ये डायलाग मुझे आज तक याद है।  राजा बांकेलाल के बाद अगला विशेषांक था “आई बला टालो”। बांकेलाल ने कभी अपने पूर्वजों का श्राद्ध नही किया था। इसलिए इस बार उसे आ घेरा उसके दादा, पडदादा, लक्कडदादा और इस से भी ऊपर के दादा ने। शैतानी योजनाएं बनाने वाला बांकेलाल इस पूरी कामिक अपने पूर्वजों के लिए खाना ही बनाता रहा। ही ही ही। वैसे इस कामिक मे सेनापति का काम भी सराहनीय रहा। इस कामिक मे तो उसने बहुत वफादारी दिखाई। “इच्छामणि” बांकेलाल का इस साल का चौथा विशेषांक था। बांकेलाल को जंगल मे प्राप्त होती है इच्छामणि। जो अपने स्वामी की हर इच्छा को पूर्ण करती है। तो क्या बांकेलाल की इच्छा पूरी हो सकी? वैसे मणि मिलते ही अपनी इच्छा मे घोडे बादशाह को गधा बना दिया था और इस कामिक के साथ ही बादशाह का रोल हमेशा के लिए समाप्त हो गया।

अब नम्बर आता है “शैतान खोपडी” का। बांकेलाल को मिलता है बादशाह का भाई कालिया। और ये कालिया बादशाह से दोगुना खतरनाक है क्योंकि बादशाह तो एक बार गिराता था लेकिन कालिया दो बार अपने सवार को गिराता है। और इस कामिक की पूरी कहानी भी दरअसल कालिया की इस शैतानी का नतीजा थी। कामिक के आखिरी पन्ने और कामिक का आखिरी फ्रेम बहुत ही शानदार बने है और इसमे बांकेलाल का क्रोध देखते ही बनता है। ये कामिक मैं काफी समय से ढूंढ रहा था और पिछले साल दिसम्बर मे मुझे नागपुर मे ये कामिक मिली। “तिलिस्मी जूते” बांकेलाल का इस साल का आखिरी विशेषांक था। इस बार बांके के हाथ लगे तिलिस्मी जूते जो इंसान को राक्षस मे बदल देते थे और बांके की मंशा थी ये जूते राजा विक्रम सिंह को पहनाना। और यही मंशा किसी और की भी थी। लेकिन विक्रम सिंह से पहले ये जूते पहने पहनें कुछ और लोगो ने। और उसी से पैदा हुई बहुत सारी हास्यप्रद स्थितियाँ। इन विशेषांकों के अलावा बांकेलाल की ये कामिक्से भी आई इस साल। ना ना नागिन, कथाकार, ढूंढो ढूंढो, चौरासी घंटे, देवपुत्र, ॠषि बांकेलाल, सिंहासन खाली और दर्द पुराण। इनमे से मे ॠषि बांकेलाल का जिक्र करना चाहूंगा क्योंकि इसमे पहली बार बांके ने राजा बनने का विचार त्याग कर ॠषि बनने का निर्णय लिया। और ॠषि-मुनियों की तरह बहुत से कष्ट भी उठाए। ही ही ही।

विशेष: बांकेलाल के सारे विशेषांक एक के बाद एक नही आए थे। बीच-बीच मे ऊपर वर्णित सामान्य 32 पन्ने वाली कामिक्से भी आती रही।

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Aatishbaz

Barood ka Khiladi
नागराज के बारे मे बात करते हुए मैंने परमाणु का उल्लेख भी किया था। तो अब परमाणु पर ही चर्चा करते है। जैसे कि मैं पहले ही बता चुका हूं परमाणु की इस साल की पहली कामिक “आतिशबाज” थी। ये तीन कामिक्सों की एक सीरिज की पहली कामिक थी जो कि परमाणु की दुनिया के एक खास किरदार के लिए बहुत महत्वपूर्ण थी। शीना की जिंदगी मे एक शख्स आने वाला था और वो उसके लिए कोई अजनबी नही था। आतिशबाज एक गूंगा और बहरा आदमी है जो कि अजगर पटेल के लिए काम करता है। और अजगर पटेल भी परमाणु के लिए कोई अजनबी नही है। अजगर पटेल से परमाणु की मुठभेड बम कामिक के दौरान हुई थी जब पहली बार शीना नजर आई थी। और उसी कहानी का सहारा लेकर इस सीरिज की रचना हुई। इस सीरिज की बाकी दो कामिक्सों के नाम है “बारुद का खिलाडी” और “हर घर बारुद।” परमाणु के प्रशंसको के लिए ये तीनों कामिक्से बहुत अहम स्थान रखती है।

विशेष: इस पूरी सीरिज मे सुरेश डींगवाल जी की पेंस्लिंग पर विटठल कांबले जी और मनु जी ने इंकिग की है। जिससे चित्रो पर मनु जी का प्रभाव दिखाई देता है। कुछ-एक फ्रेम्स मे शीना बहुत ही खूबसूरत दिखती है।


आतिशबाज सीरिज की समाप्ति के बाद परमाणु नजर आया साल के अपने पहले विशेषांक मे। “तिरछी टोपी” मे। विलेन का नाम भी यही था और वो अपराध के अंजाम देने के लिए भी टोपियों का ही इस्तेमाल करता था। कामिक मे मनु जी का आर्टवर्क है। इस कामिक की दो खास बाते मे आप लोगो को बताना चाहूंगा। पहली, इस कामिक मे इंस्पेक्टर धनुष और हवलदार बाण का काम सराहनीय रहा है। ये दोनो ही इंस्पेक्टर विनय से ईर्षा  करते है लेकिन परमाणु के लिए धनुष अपनी जान की बाजी भी लगा देता है। दूसरी, इस कामिक मे कामिक के लेखक “हनीफ अजहर” भी एक अहम भूमिका मे है। तिरछी टोपी उनका सहारा लेकर भी परमाणु को अपने रास्ते से हटाने की कोशिश करता है पर कामयाब नही हो पाता। तिरछी टोपी के बाद आई “कैमिको।” इसके बारे मे बताने के लिए मेरे पास कुछ नही है। इसलिए इसकी अगली कामिक के बारे मे बात करते है। “आँटोमैटिक” इस साल का परमाणु का दूसरा विशेषांक था। विलेन का नाम भी यही था। (तिरछी टोपी की तरह) ये विलेन दुनिया की हर मशीन को अपने कंट्रोल मे कर सकने की काबलिय रखता था और अपनी इसी शक्ति को और बढाने के लिए इसे चाहिए थी सुपर पावर बैटरी। परमाणु इसके और सुपर पावर बैटरी के बीच मे एक अभेद्य दीवार की तरह खडा हो जाता है। एक typical action/adventure कामिक है लेकिन है मजेदार। आँटोमैटिक के बाद परमाणु का अगली कामिक थी इंस्पेक्टर स्टील के साथ टू-इन-वन विशेषांक “विनाशक।” ये कामिक हालीवुड मूवी Terminator से प्रेरित है। स्टील का रोल ज्यादा नही है। क्षिप्रा को अच्छी फुटेज मिली है इस कामिक मे। ठीक-ठाक लगती है मुझे ये कामिक। विनाशक के बाद आई “रक्षक।” संयोग देखिए पहले विनाशक आया और फिर रक्षा करने रक्षक। ये 32 पन्नों वाली कामिक है। सुदूर ग्रह से आए प्राणी को तलाश एक प्राचीन नगर की। ये प्राणी गजब की शक्तियाँ रखता है और साथ ही ये भी जान जाता है कि इंस्पेक्टर विनय ही परमाणु हैं। और उस नगर की तलाश मे अंजाने मे इससे बहुत बडी तबाही मच जाती है जिसे परमाणु भी नही रोक पाता। तब यही प्राणी परमाणु की मदद करता है। कहानी बहुत अच्छी है इस कामिक की। चित्रांकन भी बहुत साफ-सुथरा है।

परमाणु की रक्षक से अगली कामिक थी शक्ति के साथ “जीरो-जी”। परमाणु और शक्ति का ये दूसरा टू-इन-वन विशेषांक था। इसमे विलेन zero gravity atmosphere create कर के दिल्ली वासियों मे खौफ पैदा करता है ताकि वो ये शहर छोडकर चले जाए। इस कामिक मे वण्डर वूमैन भी थी। इस कामिक की खास बात मे आप लोगो को बताना चाहूँगा। इस कामिक मे विलेन जीरो जी जिन लोगो के लिए काम करता है वो प्रोपटी डीलर्स है जिन्होंने दिल्ली शहर के बाहर एक और शहर बनाया है। और वो चाहते हैं कि दिल्ली वाले अपना शहर छोडकर उनके इस नए शहर मे बस जाए। आज कल जिस तरह से दिल्ली से सटे हुए दूसरे राज्यों मे कुछ आधुनिक शहर (गुडगांव, नोएडा, फरीदाबाद) बन गए है और लोग उन मे बडी तादाद मे रहने लगे है उसे देखते हुए मुझे इस कामिक की याद आ जाती है। वैसे 1999 मे नोएडा, गुडगांव बहुत ही साधारण से नगर थे और तब किसी ने सोचा भी नही था कि इन मे इतनी तादाद मे लोग जा कर बस जाएंगे। सिवाय राज कामिक्स के। ही ही ही। जीरो जी के बाद आई “परमाणु नही आएग़ा।” क्षिप्रा के अति आत्मविश्वास की कहानी है ये कामिक। उसे लगता है कि परमाणु हर समय उस की हिफाजत कर सकता है और इसे साबित करने के लिए वो बार-बार जानबूझ कर अपने आप को मुसीबत मे डालती है और एक बार तो मरने से बाल-बाल बचती है। साल के आखिरी मे परमाणु का विशेषांक “नीम हकीम” आया। इसकी कहानी लिखी थी अनुपम सिन्हा जी ने और चित्र बनाए थे सुरेश डीगवाल जी ने। दोनो ही मामलो मे कामिक 100 मे से 100 नम्बर लेती है। अमर बूटी की तलाश मे है हकीम। परमाणु उसे रोकता है और इसमे उसकी मदद करते है हकीम के गुरु आराक्षु। यहाँ से घटनाक्रम एक नया मोड लेता है। कहानी का अंत चौंका देने वाला है। कहानी के अंत मे चेला गुरु से बढकर साबित होता है।

परमाणु की ज्ञान विज्ञान से भरी कामिक्सों के इस साल को यही पर विराम देते है और कूच करते हैं वन्य जीव-जन्तुओ और प्रकृति की ओर। बताने की कोई जरूरत नही की अब चर्चा होगी कोबी और भेडिया की। मेरे पास इनके बारे मे चर्चा करने के लिए ज्यादा कुछ नही है। कोबी और भेडिया की साल की पहली कामिक “मेरा जंगल” साल के पहले सैट मे ही आई थी। इसकी कहानी कुछ इस तरह थी की कोई रहस्यमयी आदमी जंगल मे भेडियो को मार रहा है। और जब उस शख्स का पर्दाफाश होता है तो कोबी और भेडिया दोनो हैरान रह जाते है। इसके बाद कोबी और भेडिया के 32 पन्नों वाली दो कामिक्से ओर आई। “आग और पानी” और इसका दूसरा भाग “जेन।” जेन इन दोनो को मनाने का भरसक प्रयत्न करती है लेकिन कामयाब नही हो पाती। कहानी के अंत मे ये दोनो एक शांति संधि भी कर लेते है। लेकिन सिर्फ जेन को खुश करने के लिए।


Balikuthar
अब बात करते है विशेषांकों की। कोबी और भेडिया के इस साल सिर्फ विशेषांक तीन ही आए। साल का इनका सबसे पहला विशेषांक था “डोमा।” खूंखार आदमखोर “छंत” जो किसी भी मृत व्यक्ति को अपनी तंत्र क्रिया से जीवित कर उसे अपना गुलाम बना लेता था, वर्षो के बाद फिर से जंगल मे सक्रिय हो गया था। उसके डोमों से टकरा गए कोबी और भेडिया। छंत ने कोशिश करी कोबी को भी अपना गुलाम बनाने की लेकिन कामयाब नही हो पाया। डोमा के बाद आई “बलिकुठार।” ये 96 पन्नों वाला कोबी और भेडिया का दूसरा विशेषांक था साथ ही राज कामिक्स की glossy paper वाली दूसरी कामिक भी। कुठारा जाति के कबीले मे शुरु होती है एक हिंसक प्रतियोगिता। जिसके विजेता को प्राप्त होती है वन देती की शक्तिशाली बलिकुठार। बलिकुठार के बारे मे ये प्रचलित है कि इसके धारक के आगे शत्रु का शीश स्वंय ही झुक जाता है। बलिकुठार के प्रबल दावेदारों से टक्कर होती है कोबी और भेडिया की। दूसरी तरफ जेन कुछ ओर ही उधेडबुन मे लगी हुई है। क्या बलिकुठार के आगे कोबी और भेडिया की गर्दने झुक जाती हैं? क्या जेन का मकसद पूरा हो पाता है? बहुत सारा एक्शन और थ्रिल भरा हुआ है इस कामिक मे। कोबी और भेडिया के प्रशंसक इस कामिक को बिल्कुल भी छोडना नही चाहेंगे। “भील” कोबी और भेडिया का साल का तीसरा और आखिरी विशेषांक था। भील जाति से दुश्मनी मोल लेता है कोबी। तंत्र शकि के उपासक उस से उसकी शक्ति के स्रोत उसका कंठहार और कमर पट्टिका छीन लेते है और कोबी की बलि देने का प्रयास करते है। तब भेडिया उसकी जान बचाता है। लेकिन कंठहार और कमर पट्टिका भीलो के पास ही रह जाती है जिन्हे उनका मुखिया कुबाकू धारण करके कोबी की सारी शक्तियाँ प्राप्त कर लेता है। पशु बुद्धि कोबी अपना कंठहार और कमर पट्टिका वापिस प्राप्त करने के लिए भीलो से पुन: टकरा जाता है जिसकी उसे एक बहुत बडी कीमत चुकानी पडती है। कामिक के अंत मे कुबाकू को भेडिया मार देता है लेकिन वर्षो बाद ये कुबाकू एक नए रुप मे “कीर्ति सतम्भ” मे नजर आता है। भील के बाद कोबी और भेडिया की दो 32 पन्नों वाली कामिक्से और आई थी। “अरे बाप रे” और “चारो खाने चित।”

विशेष: बलिकुठार के ग्रीन पेज मे कोबी और भेडिया के अगले साल आने वाले 96 पन्नों के विशेषांक “भागो पागल आया” के बारे मे बताया गया है।


Nisachar
अब बात करेंगे उस किरदार की जिसकी एक खास कामिक की वजह से ये साल मेरे लिए ओर भी ज्यादा खास बन गया था। सुपर कमांडो ध्रुव की इस साल की शुरुआत “दुश्मन” से हुई। चंडिका के भेद और राजनगर मे आए एक नए खलनायक विदूषक के ईर्द-गिर्द इस कामिक की कहानी को लिखा गया था और एक समय तो ध्रुव इस निष्कर्ष पर पहुंच ही गया था कि श्वेता ही चंडिका है। लेकिन श्वेता की एक मददगार ने उसका ये रहस्य बचा लिया। कामिक काफी मनोरंजक है। विदूषक और चंडिका के संवाद काफी हँसाते है। चलो अब उस खास कामिक का भी जिक्र कर लेते हैं जो इस साल की सबसे बडी USP थी। ध्रुव और डोगा का टू-इन-वन विशेषांक “निशाचर।” इस कामिक के लिए मेरे आस पडोस मे कामिक पढने वाले लोगो मे कितना पागलपन था ये तो मैंने आप लोगो को पिछली पोस्ट मे बता ही दिया था। लेकिन क्या ये कामिक उम्मीद पर पूरी उतर पाई। जवाब है हाँ।  निशाचर को लेकर लोगो के मन मे कई सवाल थे। जैसे कि डोगा को कौन बनाएगा? डोगा तंत्र-मंत्र की शक्तियों से कैसे मुकाबला करेगा? और सबसे बडा सवाल ये था कि डोगा और ध्रुव का जो टकराव कामिक के एड मे दिखाया गया था उसमे जीतेगा कौन? निशाचर कामिक ने इन सब सवालो का बखूबी जवाब दिया और अपने प्रशंसको को जरा भी निराश नही होने दिया। कामिक की शुरुआत होती है सदियों से जमीन के नीचे दबे हुए निशाचर के जागने से। निशाचर का पहला मुकाबला डोगा से होता है। इसके बाद कहानी आगे बढती है और नए-नए किरदार उसमे जुडते जाते है। निशाचर का मकसद होता है दो महा राक्षसों नारकी और पातकी को उनकी कैद से आजाद कराना और पृथ्वी पर फिर से पाप को फैलाना। ध्रुव का पहला मुकाबला निशाचर के एक शैतान तमचर से होता है और बाद मे वो सुरागो का पीछा करते-करते पहुंच जाता है मुंबई। इस कामिक मे surprise के तौर पर ध्रुव की तांत्रिक दोस्त लोरी भी है। कहानी के climax मे जब डोगा और ध्रुव नारकी और पातकी के वश मे होकर आपस मे लडते है तो लोरी ही इन दोनो को उनके चुंगल से बचाती है। कहानी के अंत मे नारकी और पातकी नष्ट हो जाते है और निशाचर को पुन: बंदी बना लिया जाता है। लेकिन ये इस कामिक का तो अंत है लेकिन कहानी अभी भी जारी है असुर लोक मे।


Kaliyug
असुर सम्राट शंभूक चिंतित है निशाचर की पराजय से। ऐसे मे गुरु शुक्राचार्य उसे सलाह देते है देवताओ की शक्ति का प्रयोग उन्ही के विरुद्ध करने की। मकसद है सदा-सदा के लिए ब्रह्मांड मे व्याप्त करना “कलियुग।” ऊपर नागराज का जिक्र करते हुए मैंने जिस कामिक को बाद मे चर्चा के लिए बचा के रखा था वो यही थी। इधर पृथ्वी पर नारकी और पातकी द्वारा फैलाया गया पाप अपना असर दिखा रहा है और अपराधियों को अपराध करने के नए-नए तरीके सुझा रहा है। और इसी से प्रेरित होकर प्रोफेसर नागमणि नागराज को अपने जाल मे फंसा लेता है और मरणासार हो चुके नागराज को रुख करना पडता है नागद्वीप की ओर। दूसरी तरफ शंभूक देवताओं के आशीर्वाद के रुप मे मानवो को प्राप्त दैवीय शक्ति को हासिल करने के लिए अपने असुर योद्धाओं को पृथ्वी पर भेजता है। ऐसे एक असुर को तो ध्रुव और शक्ति हराने मे सफल हो जाते है। परंतु एक अन्य असुर नागराज का विष प्राप्त करने मे सफल हो जाता है। दैत्य गुरु शुक्राचार्य उसी विष का प्रयोग देवराज इंद्र के पुत्र जयंत पर करते है जिसका मकसद है कलयुग को ब्रह्मांड मे हमेशा के लिए व्याप्त करना। इस समस्या का समाधान है परम शक्ति क्षेत्र मे रखा हुआ शतरुपा पुंज। जिसे प्राप्त करने के लिए देवता मदद लेते हैं मानवों की। शक्ति इस अभियान के लिए चुनती है नागराज और ध्रुव को। शतरुपा पुंज को प्राप्त करने का संघर्ष ही इस कामिक की सबसे बडी खासियत है। इसमे असुर योद्धाओं के साथ नागराज और ध्रुव की भिडंत बहुत अच्छी है। “छईयां-छईयां” और “तडित-गिरी” का नाम मैं विशेष तौर से लेना चाहूंगा। शक्ति के शक्ति मुंड ने भी ध्रुव के साथ मिलकर हास्य मे अच्छा योगदान दिया है।

विशेष: जब असुर योद्धा पृथ्वी पर देवताओं की शक्ति प्राप्त करने के लिए आते है तो एक असुर का सामना Thor से होता है। इस कामिक मे Thor को भी दिखाया गया है।

निशाचर के बाद ध्रुव की दो और कामिक्से आई इस साल। “क्विज मास्टर” और “ममी का कहर।” क्विज मास्टर मे टाटो नाम का एक शख्स ध्रुव को अपनी पहेलियों से बहुत मुश्किलों मे डाल देता है। ये टाटो कुछ-कुछ काल पहेलिया से मिलता-जुलता है। कामिक अच्छी है और काफी एक्शन भरा हुआ है इसमे। साथ ही साथ टाटो और ध्रुव ने अच्छे जोक सुनाए है एक दूसरे पर। कभी-कभी सोचता हूँ कि अगर Egypt वालो ने ममी का patent करा रखा होता तो आज वो काफी मालामाल हो गए होते। क्योंकि दुनियाभर मे उनसे जुडी हुई बहुत सारी रोमांचक कहानियां, कामिक्से, फिल्मे बन चुकी है। अब ध्रुव की दुनिया मे भी ममी का आगमन होने वाला था। लेकिन ये ममी मिस्र की नही बल्कि राजनगर की ही थी। श्वेता थोडी extra pocket money के लिए part time tourist guide का काम करने लगती है और पर्यटकों को ले जाती है राजा गजबल दौरी के महल। वही जिक्र होता है गजबल दौरी की ममी और उसके खजाने का। जिसे सुनकर एक नौजवान पर्यटक विक्रम उस ममी और उसके खजाने को ढूंढने का प्रस्ताव ध्रुव के समक्ष रखता है। और उन्हे खजाना और ममी मिल भी जाते है। लेकिन कहानी तो तब शुरु होती है जब वो ममी जिंदा हो जाती है और उत्पात मचाना शुरु कर देती है। इस विनाश को अब या तो ध्रुव रोक सकता है या फिर विक्रम। लेकिन विक्रम कैसे रोक सकता है ममी को??

विशेष: विक्रम एक talented electronic engineer है और ध्रुव इसकी मदद “शह और मात” मे लेता है।


Khoon ka Khatra
अब जब निशाचर का जिक्र हो ही गया है तो क्यों ना डोगा की ही बात कर ली जाए। डोगा के फैन्स के लिए ये साल हैरानी से भरा था क्योंकि इस साल डोगा के सिर्फ 6 ही कामिक्से आई। और यदि निशाचर को भी जोड लिया जाए तो 7। लेकिन ये सभी कामिक्से डोगा के कैरियर मे मील के पत्थर की तरह थी। डोगा का इस साल का सफर निशाचर से ही शुरु हुआ था जिसके बारे मे हम पहले ही चर्चा कर चुके है। उसके बाद आया “खून का खतरा।” मुंबई मे सुहागनों के सिर पर हर साल करवा चौथ पर मंडराता है खून का खतरा। हर साल कोई एक सुहागन होती है एक सीरियल किलर के पागलपन का शिकार। लेकिन इस बार डोगा ने दावा किया है उस हत्यारे को पकडने का। डोगा के अलावा लेडी इंस्पेक्टर तेजस्विनी तलवार और काली विधवा भी है उस हत्यारे के पीछे। लेकिन डोगा इन दोनो से एक कदम आगे रहता है क्योंकि उसके साथ है काल पहेलिया। अपनी तरह का एकमात्र कामिक है ये जिसमे डोगा अपने ही दुश्मन के साथ मिलकर एक कातिल तक पहुंचना चाहता है। भरत जी और तरुण कुमार वाही जी का कसा हुआ लेखन, मनु जी का गजब का आर्टवर्क, काल पहेलिया, काली विधवा, लेडी इंस्पेक्टर तेजस्विनी तलवार ये सब मिलकर इस कामिक को एक ultimate thrill, suspense and action से लबालब कामिक बना देते है। एक ऐसी कामिक जिसे कोई भी राज कामिक्स फैन बिल्कुल भी miss नही करना चाहेगा।

विशेष: ढूंढते थे जिसे गली-गली, वो छुरी बगल मे मिली और अलसी और बुल्ली। इस कामिक मे से ये दोनो चीजे मुझे बहुत पसंद है। J

इसके बाद आई “आठ घंटे।” जिसकी कहानी है रिटायर हो रहे एक ईमानदार जज की जो कसम खाता है डोगा को आठ घंटो मे पकडने की। एक कुख्यात अपराधी फकीरा को जज धर्माधिकारी बाइज्जत बरी कर देता है। दूसरी तरफ धर्माधिकारी के पूरे परिवार की हत्या कर दी जाती है और इलजाम आता है डोगा पर। डोगा को अपने आप को बेगुनाह साबित करना है और साथ ही साथ फकीरा और उसके भाई लकीरा को भी सबक सिखाना है। धर्माधिकारी का मकसद है डोगा को पकडना। चाल पर चाल चली जाती है। अंत मे लकीरा धर्माधिकारी के हाथों से मारा जाता है। कहानी भावनात्मक भी है और सुरेश डीगवाल का चित्रांकन काफी पसंद आया मुझे। डोगा का साल का तीसरा विशेषांक था “डोगामार।” इस कहानी की कलम एक बार फिर थामी थी भरत जी और तरूण कुमार वाही जी ने और पेंसिल की बागडोर थी मनु जी के पास। तो कामिक तो सुपरहिट होनी ही थी। J मुंबई underworld का एक गेंगस्टर जब्बार, डोगा के नाम की सुपारी देता है एक इंटरनेशनल contract killer “कार्लोस” को। कार्लोस डोगा को फसाने के लिए कई तरह के जाल बिछाता है और आखिरकार डोगा उसके हाथों मारा जाता है। और तब अपराधियों से निपटने के लिए आता है डोगा का भूत। अदरक चाचा और पुलिस कमिश्नर ने भी काफी अच्छी भूमिका निभाई है कामिक मे। कामिक पूरी तरह से रोमांच से भरी हुई है।

विशेष: आँडोमास साहब। कार्लोस तो आँडोमास का चलता फिरता प्रचार बन गया था। J

इसके बाद “चार मीनार” का नम्बर आता है। डोगा की इस साल की एकमात्र 32 पन्नों वाली कामिक। लेकिन इसमे भी बहुत दम था। क्योंकि विलेन मे जो दम था। क्योंकि उसके गुरु भी वही थे जो डोगा के थे। और उन्ही चारो चाचा को हराना भी चाहता था वो। “कीर्तिमान” नाम के इस शख्स ने चारो चाचा के साथ-साथ डोगा के भी छक्के छुडा दिए और जब उसका रहस्य सामने आया तो सब के हाथों के तोते उड गए। इस कामिक से डोगा के जीवन मे एक और किरदार का आगमन हुआ जो आगे और भी कामिक्सो मे नजर आया। “बटलर” का जिक्र मैं इस के चित्रों और कामिक के अंत के संवादों के लिए करना चाहूँगा। एक दरिंदा, इंसानी और जानवरो के माँस का भूखा डोगा के शहर मे है। लोग गायब हो रहे हैं। डोगा उस शैतान को पकडने के लिए चलता है एक चाल लेकिन धनिया चाचा फंस जाते हैं बटलर के शिकंजे मे। और तब डोगा का जुनून भारी पडता है उस शैतान पर भी जो बडे से बडे जानवरों का भी शिकार करने की ताकत रखता है। कामिक के आखिरी पन्नों मे डोगा के इसी जुनून और ताकत को सशक्त संवादों के जरिए दिखाया गया है। “टाइम ओवर” डोगा की साल की आखिरी कामिक थी। ये कामिक डोगा के लिए नही बल्कि उसके होने वाले साले चीता के लिए थी। चीता की दोस्त रजनी के परिवार की जान के पीछे पडा है एक हत्यारा और धीरे-धीरे वो रजनी को अकेला बनाता चला जा रहा है। जिसके  भी पास पहुंचता है टाइम ओवर का पर्चा उसकी हो जाती है मौत। लेकिन इस टाइम ओवर की पहेली को डोगा नही चीता सुलझा लेता है। मनु जी का शानदार आर्टवर्क है कामिक मे और कहानी खून का खतरा और डोगामार की तरह ही रोमांच से भरी हुई है।

डोगा का किस्सा यहीं पर खत्म करते हैं और अब बात करते हैं तंत्र और तलवार के धनी भोकाल की। भोकाल के लिए ये साल काफी अच्छा रहा। उसकी कुल 13 कामिक्से आई जिनमे 5 विशेषांक थे। लेकिन जैसा कि मैंने इस पोस्ट की शुरुआत मे ही लिख दिया था कि मैं इस साल आई बहुत सी कामिक्से नही पढ पाया था इसलिए भोकाल के बारे मे मैं ज्यादा बता नही पाऊँगा। भोकाल की इस साल की पहली कामिक थी “मृत्युंजय।” ये शायद दुर्गमा से आगे की कहानी है। इसके बाद “लक्ष्य” और “गुरुत्वा” आई। फिर आया भोकाल का साल का पहला विशेषांक “मृत्युसंकेत।” ये कामिक मेरे एक दोस्त गौरव श्रीवास्तव को बहुत प्रिय है। कामिक काफी मनोरंजक और रोमांचकारी है। इसके बाद आई “गुणीक” और “फांसी दो भोकाल को।” गुणीक के रुप मे भोकाल को एक और शत्रु प्राप्त हुआ। इसके बाद भोकाल के दो विशेषांक आए। “मोहरा” और “मात।” ये दोनो एक ही कहानी है। नागमानवो और गुरुडमानवो के बीच चल रही शत्रुता के बीच एक मोहरा बन जाता है महाबली। रहस्य और रोमांच से भरी है दोनो कामिक्से। इसके बाद “रणछोड” आई। इस कामिक का अंत बहुत ही अच्छा बना है। फेसबुक पर नलिनाक्ष ईशु ने कुछ समय पहले इसका जिक्र भी किया था। रणछोड के बाद “चांडाल” आई। ये भोकाल का चौथा विशेषांक था साल का। इसमे हिडिम्बा, घटोत्कच, हनुमान और भगवान श्री कृष्ण भी है। चांडाल नाम का राक्षस भोकाल के लिए रचता है एक षडयंत्र जिसमे मोहरा बनता है वीर घटोत्कच। और स्वंय हनुमान भी भोकाल से मुकाबला करते है। कैसे देता है महाबली इन दोनो को मात? चांडाल के बाद “छदम” और “भोकाल का काल” जो कि एक सीरिज है और आखिरी मे आया भोकाल का पांचवा विशेषांक “भोकाल बना कंकाल।”

विशेष: भोकाल के परों के लेकर 1999 मे काफी उलझन रही। किसी कामिक मे पर है तो किसी मे नही है। इसके बारे मे एक ग्रीन मे पेज मे बताया गया भी है।

अब आता है तिरंगा का नम्बर। तिरंग़ा के लिए ये साल काफी खास रहा। इस साल उसके दो विशेषांक आए। दोनों ही बहुत अच्छे विशेषांक है। लेकिन उनका जिक्र बाद के लिए बचा के रखते है। तिरंगा का ये साल शुरु हुआ “एक बटा दो” से। चाय की बात नही कर रहा हूं। कामिक का नाम है ये। एक बटा दो आधा शरीफ और आधा बदमाश है। आधी मदद पुलिस की करता है और आधी अपराधियों की। ये तिरंगा को भी आधा बना देता है। इसके बाद तिरंगा की “गोरखधंधा, मिस्ट्री वीटा और मोस्ट वाण्टेड” आई। ये तीनों ही action/adventure genre मे आती है। लेकिन इसके बाद जो कामिक आई उसने तिरंगा के पहले विशेषांक के लिए आधार का निर्माण किया।

Maut Chhupi hai Desh me

लगभग दस सालों से “मौत छुपी है देश में।” हथियारों का बहुत बडा जखीरा देश मे कही दफन है और दस सालों के बाद इसका जिक्र इसलिए हुआ क्योंकि जिसने इस मौत को छुपाया था वो दस साल के बाद वापिस आया है अपना अधूरा मिशन पूरा करने। मुस्तफा जैदी पाकिस्तान मे सक्रिय अपने भाई कुर्बान जैदी की मदद से मिशन को पूरा करने की कोशिश करता है। इस कामिक के जरिए तिरंगा पहली बार out of Country अपने जलवे दिखाता है। शुरुआत मे पाकिस्तान मे तिरंगा को थोडी मुश्किले आती है लेकिन बाद मे कुर्बान जैदी तिरंगा की मदद करता है। और दोनो मिल कर कहते है “झंडा ऊंचा रहे हमारा।” इस कामिक का मुख्य आकर्षण कुर्बान और तिरंगा की दोस्ती और मुस्तफा जैदी का रहस्योद्घाटन हैं। तिरंगा का ये पहला विशेषांक काफी बेहतरीन बना है। इसके बाद “जिंदगी एक जुआ” आई। ये कामिक राज कामिक्स का 1000th general issue है।



RC 1000th General Issu

इस कामिक मे तिरंगा अपनी जिंदगी जुए मे हार कर मरने की कोशिश करता है। और साथ ही बहुत सारी उल्टी-सीधी हरकतें कर पुलिश कमिश्नर और आम जनता को परेशान करता है। फिर आई “खाली लिफाफा” और “बोलते लिफाफे।” ये दोनो कामिक्से एक दूसरे का हिस्सा है। इसके बारे मे दो बाते बताने लायक है। पहली तो खाली लिफाफो का रहस्य। और दूसरी कि एक नकाबपोश शख्स की अधिकारिक रुप से कोई पहचान नही होती। मतलब वो देश का नागरिक नही होता। और उसके कोई कर्तव्य और अधिकार नही होते। इन दोनो कामिक्सों के बाद तिरंगा का दूसरा विशेषांक आया “करगिल।” ये वो समय था जब करगिल मे घुसपैठ की वजह से भारतीय सेना पाकिस्तान के साथ एक अघोषित युद्ध लड रही थी। इसी युद्ध की पृष्ठभूमि पर इस कामिक की रचना की गई जिससे की देशभक्ति को भावना को बल मिले। तिरंगा सजा काट रहे चार सिपाहियो के साथ मिलकर खुद सरहद पर जाता है दुश्मन सेना से लोहा लेने के लिए। और जंग का तो उसूल है कि मारो नही तो मारे जाओगे। तो तिरंगा को भी मारना पडता है दुश्मन देश के सिपाहियो को। और वो ये काम बेझिझक करता है। कहानी काफी अच्छी है और एक्शन भी बहुत है इस कामिक मे। करगिल के बाद आई “काला पोस्टर” और “शहीद।” ये दोनो ही कामिक्से मेरे पास नही है इसलिए इनसे अगली कामिक “राष्ट्रदोही” के बारे मे बात करते है। राष्ट्र सम्पति के एक चोर को पकडने के लिए तिरंगा को राष्ट्रद्रोही बनना पडता है और इसमे उसका साथ देती है विषनखा। कामिक रोमांचकारी है। “काली बिल्ली” सम्भवतः तिरंगा की इस साल की आखिरी कामिक थी क्योंकि इसका दूसरा भाग “मौत पीछे पीछे” राज का राज के सैट मे आई थी। ये दोनो ही कामिक्से मेरे पास नही है तो तिरंगा का 1999 का सफर अब यहीं समाप्त करते है।

विशेष: करगिल हिंदी और इंग्लिश दोनो मे आई थी और इससे होने वाली समस्त आय आर्मी सेन्ट्रल वेलफेयर फंड को समर्पित की गई।


Kala Doctor
तिरंगा के साथ ही आए सुपर हीरो पर चर्चा जारी रखते है। पहले बात करते है एंथोनी की। साल की पहली कामिक थी “खोद कब्र” जिसका अगला भाग था “जानलेवा।” उसके बाद आई “चितावर” और उसका अगला भाग “ये हैं मौत एंथोनी की।” इसके बाद एंथोनी की दो पार्ट वाली एक सीरिज और आई। “अघोरी और “जिंदा हथियार।” दुर्भाग्यवश मेरे पास इन मे से भी सिर्फ जिंदा हथियार ही है। मेरे एक दोस्त गौरव श्रीवास्तव के मुताबिक इस साल एंथोनी की बहुत अच्छी सीरिज आई थी। अभी तक दो का तो जिक्र हो चुका है जिनके बारे मे मुझे ज्यादा जानकारी है नही है लेकिन इससे अगली सीरिज के बारे मे मुझे सब कुछ मालूम है। जिंदा हथियार के बाद एंथोनी की अगली कामिक थी “काला डाक्टर।” एक इंसान, जिसके साथ बहुत बडा धोखा हुआ है, जिसे मौत भी नसीब नही होती, उसके हाथ लगती है काले जादू की दुर्लभ लाल किताब। जिसे पाकर वो बन जाता है बहुत सारी रहस्यमय शक्तियों का मालिक और निकल पडता है इंसानियत के दुश्मनों को सबक सिखाने। और उसकी पहली ही कोशिश मे सामना होता है एंथोनी का। इस कामिक के अगले भाग “चिल्लाओ मत” मे वो अपने साथ किए गए हर धोखे का हिसाब ले लेता है लेकिन खुद भी नही बचता। कहानी एक्शन से भरपूर और भावनात्मक भी है। इस कामिक के जरिए डाक्टरी के पेशे मे हो रहे मानव अंगों की चोरी के व्यापार को दिखाया गया है। फिर आया “मकान तेरा।” मेरा मतलब कामिक आई मकान तेरा। एक अभिशप्त मकान की कहानी है ये। ये मकान जिसके नाम हो जाता है वो भगवान को प्यारा हो जाता है। और ये मकान हो जाता है जूली के नाम। एंथोनी जूली को बार-बार मौत के मुंह मे जाने से बचाता है और फिर इतिहास के साथ मिलकर अपराधी को सबक भी सिखाता है और जूली को मकान भी दिलाता है। इसके बाद दो कामिक्से और आई एंथोनी की। “मुर्दा फिरौती” और “करोडपति कब्र।” ये दोनो ही कामिक्से नही हैं मेरे पास। तो कुल मिलाकर 11 कामिक्से आई इस साल एंथोनी की।

विशेष: एंथोनी की कागा का एड चिल्लाओ मत मे आ गया था लेकिन ये कामिक अगले साल ही आ पाई।


Makan Tera

Chillao  Mat

Death Mission
अब बात करते है फर्ज की मशीन इंस्पेक्टर स्टील की। 1999 की स्टील की पहली कामिक थी “जेल खाली।” ये कामिक पिछले साल आई “जेल ब्रेकर” का अगला भाग था और ये भी……मेरे पास नही है। L इसके बाद स्टील की दो कामिक्सो की एक बेहद रोमांचक सीरिज आई। “डेथ मिशन” और “मिशन ओवर।” ये दोनो मेरे पास है। J और उसी वक्त पढ ली थी जब ये आई थी। हे हे हे। कहानी है पांच कमांडो और एक मेजर की जिन्हे चुना गया है एक खास मिशन के लिए। जिसका अंत होना है इन लोगो की मौत के साथ। इंस्पेक्टर स्टील को इन पांचो कमांडो और मेजर को बचाना है। लेकिन मिशन कामयाब होकर रहता है। स्टील आखिरी मे अपने आप को बहुत कशमकश मे पाता है। मिशन का राज चौंका देने वाला है।

विशेष: इस कामिक मे अक्षय कुमार और सुनील शैट्टी भी है। J हे हे हे।



Mission Over
इसके बाद स्टील की तीन कामिक्सो की एक और सीरिज आई। लेकिन इस बार स्टील के साथ शक्ति भी थी। ये तीन कामिक्से थी “वंडरवलर्ड, मशीन फेल और वंडर वूमेन।” अब राज यूनिवर्स मे सिर्फ तिरंगा ही एक ऐसा एक्शन हीरो रह गया था जिसके साथ शक्ति की कामिक नही आई थी। इसके बाद की कामिक मे मैकेनिक की वापसी हुई। “मशीन मेरी गुलाम” के जरिए। इसका एक अगला भाग है “पिघल गया स्टील” जिसमे स्टील एक शानदार चाल चल कर मैकेनिक को मात देता है। इसी बीच स्टील और परमाणु की विनाशक आ चुकी थी जिसका जिक्र मैं पहले ही कर चुका हूँ। फिर आई “शैतान का अवतार” और “दुनिया मेरी जेब मे।” ये दोनो स्टील की आखिरी कामिक थी।

अब बात कर लेते है शक्ति की। शक्ति के बारे मे मैं बस इतना कहना चाहूंगा कि अब इस साल उसकी सिर्फ 32 पन्नों वाली ही कामिक्से आई सिवाय कलियुग और जीरो जी को छोडकर। इस साल शक्ति की ये कामिक्से आई। “पूजा एक्सप्रेस, चोरनी, एडवोकेट माधुरी, बोर्डर, फूल और कांटे, सारे जहां से अच्छा, महाबला, और चिंगारी।”


Shaktiman in RC
इस साल से राज कामिक्स ने उस समय के मशहूर धारावाहिक शक्तिमान की भी कामिक्से निकालने शुरु कर दिए। विराट की कामिक्से पिछले साल आ गई थी और इस साल शक्तिमान भी राज यूनिवर्स मे आ गया। इस साल शक्तिमान की निम्न कामिक्से आई। “शक्तिमान और काकोदर का कहर, आ जाओ शक्तिमान, अदृश्य मानव, इंविसिबल गैंग, कष्टक और कौन है शक्तिमान।” विराट से अलग, शक्तिमान की शुरुआत विशेषांक से हुई और ये सारे विशेषांक ही थे। विराट की 32 पन्नों वाली ही कामिक्से आती रही।  साथ ही फैंग और राज चित्र कथा भी आती रही। नागराज की नोट बुक भी आई थी।

अब बस दो ही किरदार बच गए है इस साल के। और दोनो ही हास्य किरदार है। इन दोनो को आखिरी मे रखने की भी एक खास वजह है। वो आपको आखिरी मे पता लग ही जाएगी। पहले गमराज की बात कर लेते हैं। ज्यादा कुछ हैं नही मेरे पास गमराज के बारे मे बताने के लिए सिवाए इस साल आई उसकी कामिक्सो के नाम के। मैं इस साल गमराज की सिर्फ एक ही कामिक पढ पाया और वो थी “फास्ट फूड गैंग।” इसके अलावा गमराज की ये कामिक्से आई इस साल। “लाउड स्पीकर, दूल्हे राजा, पांच रुपए का मकान, मिस्टर इंडिया, कलपुर्जे, तीन तिगाडा, जिंदा मनोरंजन, सिरफोड, गुंडे चूहे, गमराज दौड चूहे आए, जिमीकंद और पूंछ उमेठ।”


Toads first Special in 3 years
अब रह गए सिर्फ फाइटर टोडस। फाइटर टोडस को आखिरी के लिए इसलिए बचा के रखा क्योंकि इस साल का अंत उनके लिए एक नई शुरुआत थी। साल का आखिरी सैट उन्ही के विशेषांक का था। जी हाँ। फाइटर टोडस को इस साल के अंत मे मिला पिछले तीन साल के अंदर अपना पहला विशेषांक। जब पहली बार “नई दिल्ली” का एड देखा तो बहुत खुशी हुई थी कि चलो अब फाइटर टोडस के विशेषांक फिर से आने लगेंगे। और वो भी अनुपम सिन्हा जी के चित्रों से सजे हुए। हालांकि कामिक मे आर्टवर्क उनका नही था लेकिन कहानी उन्ही की थी। इस कामिक का ग्रीन पेज भी बहुत अहम है क्योंकि उसमे बताया गया है कि क्यों अनुपम जी ने फाइटर टोडस को छोडा और क्यों उन्हे फिर से उनकी कहानियां लिखना शुरु किया। और कामिक के तो क्या कहने। आज भी पढ लूं तो हंस-हंस कर बुरा हाल हो जाता है। पाकिस्तान को तो कहीं का नही छोडा इस कामिक ने। हे हे हे। नई दिल्ली के अलावा जो और कामिक्से आई वो इस प्रकार है। “अप्पू, ओवरकोट, शहर मुसीबत मे, सोने की लंका और खारी मौत।” इनमे से मैंने ओवरकोट और खारी मौत पढ रखी है लेकिन उनकी कहानी अब याद नही है और इस वक्त ये कामिक्से मेरे पास नही है।

विशेष: खारी मौत फाइटर टोडस की आखिरी 32 पन्नों वाली सामान्य कामिक थी। इसके बाद से उनके सिर्फ विशेषांक ही आए।


Kohram's Promo
दोस्तो लगभग 7000 शब्दों मे साल 1999 को काफी हद तक दुबारा जीने की कोशिश की है मैंने। अब इस पोस्ट को समाप्त करने का समय आ गया है। अब जाते-जाते आगामी वर्ष के कुछ आकर्षणों पर भी नजर डाल लेते हैं। आगामी वर्ष 2000 मनाया जाना था Doga Year के रुप मे। और इसका सबसे बडा आकर्षण था 128 पन्नों का अब तक का सबसे बडा विशेषांक। जिसमे शामिल थे RC के 9 सुपर हीरोज। 9 सुपर हीरोज एक साथ पहली बार। जिसे बना रहे थे Master of Fantasy अनुपम सिन्हा जी। मैं अच्छी तरह समझ सकता हूँ कि उस वक्त जब पहली बार पाठकों ने “कोहराम” के एड को देखा होगा तो उनकी क्या प्रतिक्रियाएँ रही होगी। इस epic project के बाद अगला बडा excitement का डोज था फाइटर टोडस के विशेषांक। जैसा कि मैंने ऊपर लिखा कि खारी मौत फाइटर टोडस का आखिरी general issue था। राज कामिक्स ने अब उनके सिर्फ विशेषांक ही निकालने का फैसला किया। और साल 2000 की शुरुआत मे ही उन्हे बना दिया “बिजनेस मैन।” लेकिन जरा रुकिए। अभी एक और epic project का वर्णन बाकी रह गया है। मैंने ऊपर लिखा था कि एक खास वजह से मैंने गमराज और फाइटर को आखिरी के लिए बचा के रखा था। फाइटर टोडस का तो हो गया। लेकिन गमराज अभी बाकी है मेरे दोस्त। साल 2000 मे गमराज के साथ भी एक experiment होने वाला था। उसको लाया जा रहा था हमारे एक्शन हीरोज के साथ। डोगा, परमाणु, कोबी और भेडिया, शक्ति और इंस्पेक्टर स्टील। ये सब गमराज के साथ मिल कर कामेडी करने वाले थे और गमराज इनके साथ मिलकर एक्शन। गमराज डोगा, कोबी, और भेडिया के साथ एक्शन करेगा। सोच कर ही हंसी आती है ना। तो फिर कामिक पढकर तो हंसते-हंसते बुरा हाल ही हो जाएगा। साल 2000 का इंतजार करने की तीन वजह तो मैंने आप लोगो को बता दी। लेकिन हो सकता है साल 2000 और भी कई कारणों से खास हो। चलिए इस बारे मे जानेंगे अगली पोस्ट मे। तब तक के लिए…

जुनून

Courtesy : www.belongstocomics.blogspot.in/

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